पाकिस्तानी नागरिक को नई जिंदगी
भारतीय डॉक्टरों ने एक पाकिस्तानी नागरिक को नया जीवन दिया है। पांच साल पहले हाईटेंशन तार की चपेट में आकर बिजली कर्मी के दोनों हाथ कट गए थे। दो बार कृत्रिम हाथ लगवाए, लेकिन सही से काम नहीं कर पाने के चलते मरीज हताशा में चला गया था।
हालांकि अब भारतीय डाक्टरों और इंजीनियरों ने मिलकर कम कीमत पर इनोवेटिम असिस्टिव डिवाइस की मदद से कृत्रिम बाजू लगाए हैं। अब मरीज आराम से खाना खाने, ब्रश करने से लेकर मोबाइल, की-बोर्ड का प्रयोग कर सकेगा।
पाकिस्तान में पांच साल पहले बिजली विभाग में कार्यरत रानो (41) के दोनों हाथों पर जब हाईटेंशन तार का झटका लगा तो उसके दोनों बाजू बेकार हो गए। बायां बाजू कंधे से काटना पड़ा] जबकि उसका दायां बाजू कोहनी के ठीक ऊपर से काटना पड़ा।
हालांकि अब भारतीय डाक्टरों और इंजीनियरों ने मिलकर कम कीमत पर इनोवेटिम असिस्टिव डिवाइस की मदद से कृत्रिम बाजू लगाए हैं। अब मरीज आराम से खाना खाने, ब्रश करने से लेकर मोबाइल, की-बोर्ड का प्रयोग कर सकेगा।
पाकिस्तान में पांच साल पहले बिजली विभाग में कार्यरत रानो (41) के दोनों हाथों पर जब हाईटेंशन तार का झटका लगा तो उसके दोनों बाजू बेकार हो गए। बायां बाजू कंधे से काटना पड़ा] जबकि उसका दायां बाजू कोहनी के ठीक ऊपर से काटना पड़ा।
बिजली के झटके से उसके दोनों पैर भी प्रभावित हुए थे और अंगूठे में सबसे ज्यादा नुकसान होने के साथ ही पैरों की कार्यक्षमता तकरीबन 20 प्रतिशत तक खत्म हो गई थी।
दिल्ली स्थित इंडियन स्पाइनल इंजरीज सेंटर में असिस्टिव टेक्नोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. नेकराम उपाध्याय ने रानो की जांच में पाया कि मरीज आत्मनिर्भरता और सामान्य जिंदगी के लिए तरस रहा था। इसके बाद किफायती डिवाइस बनाने का फैसला किया ताकि वह दिनचर्या के कार्य करने में सक्षम हो सके।
डॉ उपाध्याय ने बताया कि असिस्टिव डिवाइस लगाने में किसी क्लिनिकल चिकित्सा की जरूरत नहीं पड़ी। यह डिवाइस एक कृत्रिम हाथ की तरह काम करता है, जिससे उसे चीजें पकड़ने में मदद मिलती है। असिस्टिव डिवाइसेज मरीज की जरूरतों के मुताबिक बनाए जाते हैं जबकि मरीज को इनोवेटिव और उपयुक्त असिस्टिव डिवाइस प्रदान करने के लिए उसका क्लीनिकल मूल्यांकन किया जाता है।
दिल्ली स्थित इंडियन स्पाइनल इंजरीज सेंटर में असिस्टिव टेक्नोलॉजी विभाग के प्रमुख डॉ. नेकराम उपाध्याय ने रानो की जांच में पाया कि मरीज आत्मनिर्भरता और सामान्य जिंदगी के लिए तरस रहा था। इसके बाद किफायती डिवाइस बनाने का फैसला किया ताकि वह दिनचर्या के कार्य करने में सक्षम हो सके।
डॉ उपाध्याय ने बताया कि असिस्टिव डिवाइस लगाने में किसी क्लिनिकल चिकित्सा की जरूरत नहीं पड़ी। यह डिवाइस एक कृत्रिम हाथ की तरह काम करता है, जिससे उसे चीजें पकड़ने में मदद मिलती है। असिस्टिव डिवाइसेज मरीज की जरूरतों के मुताबिक बनाए जाते हैं जबकि मरीज को इनोवेटिव और उपयुक्त असिस्टिव डिवाइस प्रदान करने के लिए उसका क्लीनिकल मूल्यांकन किया जाता है।
No comments:
Post a Comment