मोबाइल टावर से निकलने वाले रेडिएशन बेशक देश-दुनिया में बहस और शोध का विषय बने हुए हैं लेकिन उनसे होने वाले नुकसान की आशंका से कोई इनकार नहीं कर सकता। देश में ही कई विश्वविद्यालय और आईआईटी मोबाइल और उसके टॉवरों से निकलने वाले रेडिएशन से मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों पर शोध कर चुके हैं।
इनमें से अधिकतर इसी निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि मोबाइल टॉवर से होने वाला रेडिएशन इंसानों के लिए ही नहीं जीव जंतुओं के लिए भी काफी हानिकारक है। लेकिन हैरतअंगेज रूप से देश के नीति नियंता इस बात को मानने के लिए तैयार ही नहीं हैं, देश के दूरसंचार मंत्री तो इस बात से ही इंकार करते हैं कि मोबाइल टॉवरों से इंसानी जीवन को किसी प्रकार का कोई खतरा है।
हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने दावा किया कि अभी तक हुए शोधों के अनुसार मोबाइल टॉवर से इंसानी जीवन को किसी प्रकार के खतरे के संकेत नहीं मिले हैं। इसके लिए वह डब्लूएचओ के शोध का हवाला भी देते हैं।
लेकिन इससे इतर कई महत्वपूर्ण शोधों में पुख्ता तरीके से इस बात को पेश किया गया कि किस तरह मोबाइल और उसके टॉवरों से निकलने वाले रेडिएशन मानव जाति के लिए खतरनाक होते जा रहे है, इसके चलते लोगों को कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों का सामना भी करना पड़ रहा है। जानते हैं कितना सही है दूरसंचार मंत्री का दावा।
इनमें से अधिकतर इसी निष्कर्ष पर पहुंचे हैं कि मोबाइल टॉवर से होने वाला रेडिएशन इंसानों के लिए ही नहीं जीव जंतुओं के लिए भी काफी हानिकारक है। लेकिन हैरतअंगेज रूप से देश के नीति नियंता इस बात को मानने के लिए तैयार ही नहीं हैं, देश के दूरसंचार मंत्री तो इस बात से ही इंकार करते हैं कि मोबाइल टॉवरों से इंसानी जीवन को किसी प्रकार का कोई खतरा है।
हाल ही में एक कार्यक्रम के दौरान दूरसंचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने दावा किया कि अभी तक हुए शोधों के अनुसार मोबाइल टॉवर से इंसानी जीवन को किसी प्रकार के खतरे के संकेत नहीं मिले हैं। इसके लिए वह डब्लूएचओ के शोध का हवाला भी देते हैं।
लेकिन इससे इतर कई महत्वपूर्ण शोधों में पुख्ता तरीके से इस बात को पेश किया गया कि किस तरह मोबाइल और उसके टॉवरों से निकलने वाले रेडिएशन मानव जाति के लिए खतरनाक होते जा रहे है, इसके चलते लोगों को कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों का सामना भी करना पड़ रहा है। जानते हैं कितना सही है दूरसंचार मंत्री का दावा।
मोबाइल टॉवरों से निकलने वाले रेडिएशन पर आईआईटी दिल्ली के प्रोफेशर गिरीश कुमार ने काफी पहले एक शोध किया था। उनके अनुसार मोबाइल से ज्यादा परेशानी उसके टॉवरों से है। क्योंकि मोबाइल का इस्तेमाल हम लगातार नहीं करते, लेकिन टावर लगातार चौबीसों घंटे रेडिएशन फैलाते हैं।
मोबाइल पर अगर हम घंटा भर बात करते हैं तो उससे हुए नुकसान की भरपाई के लिए हमें 23 घंटे मिल जाते हैं, जबकि टावर के पास रहनेवाले उससे लगातार निकलने वाली तरंगों की जद में रहते हैं। वो दावा करते हैं कि अगर घर के समाने टावर लगा है तो उसमें रहनेवाले लोगों को 2-3 साल के अंदर सेहत से जुड़ी समस्याएं शुरू हो सकती हैं।
वो बताते हैं कि मोबाइल टावर के 300 मीटर एरिया में सबसे ज्यादा रेडिएशन होता है। एंटिना के सामने वाले हिस्से में सबसे ज्यादा तरंगें निकलती हैं। जाहिर है, सामने की ओर ही नुकसान भी ज्यादा होता है, पीछे और नीचे के मुकाबले। इसी तरह दूरी भी बहुत अहम है। टावर के एक मीटर के एरिया में 100 गुना ज्यादा रेडिएशन होता है। टावर पर जितने ज्यादा ऐंटेना लगे होंगे, रेडिएशन भी उतना ज्यादा होगा।
मोबाइल पर अगर हम घंटा भर बात करते हैं तो उससे हुए नुकसान की भरपाई के लिए हमें 23 घंटे मिल जाते हैं, जबकि टावर के पास रहनेवाले उससे लगातार निकलने वाली तरंगों की जद में रहते हैं। वो दावा करते हैं कि अगर घर के समाने टावर लगा है तो उसमें रहनेवाले लोगों को 2-3 साल के अंदर सेहत से जुड़ी समस्याएं शुरू हो सकती हैं।
वो बताते हैं कि मोबाइल टावर के 300 मीटर एरिया में सबसे ज्यादा रेडिएशन होता है। एंटिना के सामने वाले हिस्से में सबसे ज्यादा तरंगें निकलती हैं। जाहिर है, सामने की ओर ही नुकसान भी ज्यादा होता है, पीछे और नीचे के मुकाबले। इसी तरह दूरी भी बहुत अहम है। टावर के एक मीटर के एरिया में 100 गुना ज्यादा रेडिएशन होता है। टावर पर जितने ज्यादा ऐंटेना लगे होंगे, रेडिएशन भी उतना ज्यादा होगा।

No comments:
Post a Comment